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©मुसाफ़िर

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©मुसाफ़िर

23 May 2012

आवारा चाँद...

                           
                            (1)

चाँद भी रात भर भटकता रहता है अपनी धुन में ,


सितारों की भीड़ में है 'मुसाफ़िर' आवारा चाँद .


                             (2)


चाँद फिर निकल आया है , चांदनी रातों में ,


तेरी तस्वीर फिर आ गयी ,भीगी सी आँखों में .


                             (3)


इस अजनबी शहर में फक्त तेरी  याद का सहारा है ,


वरना कब के हम भी कही ग़ुम हो गए होते .


                              (4)


कभी कभी दिल के हाथों मजबूर होकर हमने भी ,


तेरी यादों के सहारे शाम-ओ-सहर  बितायी है .


                              (5)


दिल , दोस्ती , प्यार , वफ़ा ,ख़ुलूस  'मुसाफिर' ,


मिलते हैं ये सब अब तो किताबों के पन्नो में .


                             (6)


देख के यारों की यारी 'मुसाफिर' ये ख्याल आता है ,


हम  तन्हा ही ठीक हैं यारों के इस भीड़ में .


28 January 2012

गाँव और शहर ...




गाँव में ज़िन्दगी का उत्सव-उमंग मनाते लोग ,
शहर में ज़िन्दगी के रंगीनियों में नाचते लोग.


गाँव में प्यार,दोस्ती मुफ्त में  बांटते लोग ,
शहर  में ये सब किताबों में खोजते लोग .


गाँव में प्रकृति के रंगों से सराबोर लोग ,
शहर में 'क्रेयोन' से रंग भरते लोग .


गाँव के चौपाल में एक दुसरे का सुख-दुःख बांटते लोग ,
शहर में हर घर में एक दुसरे की कहानियां बनाते लोग


.गाँव में मंदिर की घंटियों से गूंजती हैं सुबह-शाम ,
शहर में वही शोर भरी सुबह वही शोर भरी शाम .

गाँव में मुर्गे के बांग पर सुबह की आहट पाते लोग,  
शहर में फैक्ट्री के सायरन से समय मिलाते लोग .

गाँव में मिटटी के घरों में भी महलों के सुख पाते लोग ,
शहर में कांक्रीट के जंगलों में आँखों में रात बिताते लोग .

गाँव में रिश्तों के खुशबुओं से महकता हर घर आँगन ,
शहर में रिश्तों के बोझ ढोते कांक्रीट के जंगल .

गाँव में बच्चों के खिलखिलाहट से गूंजते गली मोहल्ले ,
शहर में बस्तों के बोझ से दबे ,परेशां माँ-बाप के प्यारे .

गाँव में बरगद ,आम ,पीपल ,के छांव में सुस्ताते लोग ,
शहर में ज़िन्दगी के भाग दौड़ से कब फुर्सत पाते लोग .