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©मुसाफ़िर

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©मुसाफ़िर

19 July 2011

ज़िन्दगी...कुछ रंग....



                          (1)
ज़िन्दगी की राह में कुछ मोड़ ऐसे आते हैं 'मुसाफ़िर',
के पीछे मुड़कर देखने की हसरत चैन-ओ-करार छीन लेती है .

                         (2)
ज़िन्दगी की बाज़ी में कुछ दाँव क्या हारे 'मुसाफ़िर' ,
यारों की दुआ सलाम को भी तरस गए ...!!

                         (3)
फूलों से सीखो ज़िन्दगी का सलीक़ा 'मुसाफ़िर' ,
मुरझाने से पहले चमन महका जाते हैं ...!!

                         (4)
तुम्हारे आने से पहले भी ज़ी तो रहे थे मगर ,
तुम आये , प्यार आया , ज़िन्दगी आई...!!

                         (5)
कोई शख्स दिल में इस कदर उतर गया है 'मुसाफ़िर' ,
दोस्तों की मौजूदगी भी अब तो भीड़ लगती है .  

                         (6)
प्यार का जादू भी क्या क्या तमाशे दिखाता है ,
हर तमाशे में क़िरदार बदलता जाता है .

                         (7)
ज़िन्दगी ने भी क्या क्या रंग दिखाए 'मुसाफ़िर' ,
अब तो सब से यही कहते फिरते हैं , 'ज़िन्दगी बहुत रंगीन है' .

18 July 2011

कुछ ख्याल , बिखरे से......

                     (1)
उन्हें शिकायत है हमें क़द्र नहीं जज्बातों की ,
शायद उन्हें नहीं पता दो वक़्त की रोटी क्या चीज़ है .

                     (2)
तुझ से मिला तो ये हुआ एहसास ,
चकोर चाँद को देखता क्यों है ..!!

                     (3)
कुछ लोग ज़िन्दगी में मौसम की तरह आते हैं ,
कुछ दिन ठहरकर , चुपके से गुज़र जाते हैं.

                     (4)
मुलाक़ात प्यार में जरूरी तो नहीं 'मुसाफ़िर' ,
वो अनकही बातें समझ लेते हैं ,ये क्या कम है . 

                    (5)
किसी को यूँ भी , दिल में ना बसाओ 'मुसाफ़िर' ,
सुना है इस मकान के माकीं बहुत तड़पाते हैं . 

                    (6)
छीन के मेरा सब्र-ओ-करार क्या पाएगी ,
ऐ ज़िन्दगी ये तेरे किस काम आएगी .

                     (7)
ग़म में जीने का मज़ा ही कुछ और है 'मुसाफ़िर' ,
                     (8)
वो भी क्या दिन थे  'मुसाफ़िर' , जब दीवारों से घर बनता था ,
अब घर में बनती हैं दीवारें .

जब दादी-चाची-बुआ-अम्मा-ताई की लगती थी चौपाल ,
अब दिलों के बीच बन गयी है दीवारें .

17 July 2011

कुछ शब्द , कुछ भावनाएं...



उस से बिछुड़े हुए एक जमाना हो गया ,
बहुत पुराना ये फ़साना हो गया .

हम उस फ़साने  के ऐसे किरदार बन कर रह गए ,
जिसका दुश्मन ज़माना हो गया .

कसमो और वादों के उस भीड़ में ,
एक तेरा बहाना रह गया .

कितनी अजीब ये ज़िन्दगी की रिवायते हैं ,
बस साँसो का आना जाना रह गया .

15 July 2011

यादें....


आज जब यादों के आईने में अपना चेहरा देखा ,
तुम्हारा मुस्कुराता हुआ चेहरा देखा .



यादों के बारिश में भीगते हुए , 
बड़ा खूबसुरत वो नज़ारा देखा .

तुम्हारे साथ बिताये हुए हर पल को दोबारा देखा ,
वो खूबसुरत रातें , वो खूबसुरत बातें देखा .

सर्दियों के शामों में उन सर्द जज्बातों का पिघलना देखा ,
कभी तुम्हारा वो रूठना और मेरा वो मनाना देखा .

छोटी छोटी बातों पर तुम्हारा वो बच्चों सा ज़िद ,
और मुझे परेशान देख कर तुम्हारा वो खिलखिलाना देखा .

वो कभी न ख़त्म होने वाली बातों का सिलसिला देखा ,
वो खामोशियों का काफ़िला देखा .

यादों के इस आईने में क्या क्या मंज़र देखा ,
कभी खुद को रोते देखा , कभी हँसते देखा .

14 July 2011

ज़िन्दगी क्या है ?

ज़िन्दगी क्या है ?
किसी के  लिए किसी के साथ बिताये कुछ पल है ज़िन्दगी !
किसी के लिए दो वक़्त की रोटी के लिए संघर्ष है ज़िन्दगी !
किसी के लिए देश के लिए जान देने का एक मौका है ज़िन्दगी !
किसी के लिए धरम और मज़हब के नाम पर धोखा है ज़िन्दगी!
किसी के लिए हर पल एक समझौता है ज़िन्दगी !
किसी के लिए बेवफ़ा है ज़िन्दगी ,
तो किसी के लिए एक खूबसुरत दास्ताँ है ज़िन्दगी !
एक पहेली है ज़िन्दगी , पर सबकी सहेली है ज़िन्दगी !