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©मुसाफ़िर

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©मुसाफ़िर

19 November 2013

क्षणिकाएं

                                         

                                    

शोहरत

पाना नहीं है आसान ...
सम्हालना है मुश्किल ,
शोहरत की बुलंदियां हैं फिसलन भरी .

 इश्क़

राह इसकी बहुत मुश्किल है ...
मंजिलें काँटों भरी हैं ,
फूलों का सेज भी , काँटों का ताज भी है ये इश्क़ .

मंजिल

ना मिले तो बेचैनी , मिले तो उकताहट...
चलें तो दर्द , रुके तो बेक़रारी ,
मंजिलों की कीमत तो चुकानी पड़ती है .

जुगनू

रात के सन्नाटों में, ख़ामोशी के काफिलों में ...
जंगल के रास्तों में, गाँव के गलियों में,
अंधेरों से हरदम जूझता हुआ ये जुगनू .

मुसाफिर

ये आता है , ये जाता है ...
एक मुसाफिर की फितरत भी तो वक़्त की सी है ,
दोनों कभी टिक कर रहते नहीं कहीं ..

ख़ामोशी

बात वही जो तुमने कही नहीं ,
बात वही जो हमने सुनी ,
ख़ामोशी की भी तो जुबान होती है .

लफ्ज़

वो लफ्ज़ कुछ धुंधले हो गए...
मैं पढता था जो तुम्हारी आँखों में ,
तुम्हारे मेरे बीच शायद ज़माना आ गया .

फूटपाथ

फूटपाथ पर जगह कम नहीं ...
दिन भर की थकान से नींद भी आ जाती है,
अमीरों की गाड़ी के पहिये भी गरीबों का खून पीते हैं.

एल्बम

अनायास ही ले आता चेहरे पे मुस्कान...
कुछ अनकही लम्हों की दास्ताँ ,
पुराना एल्बम(फोटो) हमेशा नया होता है .

रास्ते

कहीं सरपट कहीं घुमाओदार....
कभी आसान तो कभी मुश्किल ,
रास्ते मंजिल पर ख़त्म नहीं होते हैं .

चुनाव

सब की खुशहाली , सब की तरक्की...
भरपेट भोजन और सर पे छत ,
मौसम है चुनाव का वादे भी चुनावी हैं .

किस्मत

चाँद के साथ भटकता रहा मैं भी रात भर...
सितारों के बीच , सितारों के साथ साथ ,
किस्मत किसी तारे से बदला नहीं करते .

चिराग

खुद को जलाता रहा रातभर ...
लोग आते रहे जाते रहे,किसी ने देखा भी नहीं ,
वो चिराग है रौशनी करना उसका काम है .

दफ्तर

फिर दफ्तर में रौनक आ गयी ...
रामधन की धुल खाती फाइल शायद अब आगे बढ़ जाए ,
त्यौहार ख़त्म हुए ,मेले शुरू हुए .

चाँद

चाहतों के किस्से , शिकवे शिकायतें ...
इंतज़ार से अलसाई आँखें ,
चाँद भी थक के सो जाता है सुबह .

चौपाल

खेतों से गुजरती लम्बी लम्बी पगडंडियाँ ...
रास्तों का जंगल , जाने पहचाने लोग ,
शाम के चौपाल में बसती है गाँव .

आवारगी

सिगरेट जला के चुइंगम चबाना ...
पुरानी मोटर साइकिल पर भटकना रातों में ,
आवारगी के भी कई रंग होते हैं .

गाँव

गायों के गले की घंटियों की आवाज़ ...
घर लौटते चिड़ियों की कलरव ,
गाँव में शाम ऐसे होती है .

मजदूर

बारिश में भीगा हुआ , धुप में तपा हुआ ...
कभी किसी बिल्डिंग में कभी खेतों में ,
मजदूरों की छुट्टियाँ नहीं होतीं .

रात

दिन भर की थकन ...
दिलों के ग़म , जमाने की खुशियाँ ,
रात सब कुछ छुपा लेता है अपने सीने में .

20 May 2013

My Dispersed Thoughts....

 
 


(१)
वो बस मंजिल का भरम था ख्वाब में ...
आँख खुलते ही रास्ते मुस्कुराने लगे .

  (२)
पानी को लेकर देश में मची है हाहाकार , पैसे वाले कर रहे , खून का व्योपार .

  (३)
गाँव में फूल रहे हैं टेसू के फूल , शहर में मिलते सिर्फ मिटटी और धुल .

  (४)
दिल की दुकाने सजी , प्यार हुआ व्योपार ... हम जैसे सादा दिलों का , कोई नहीं खरीदार .

  (५)
रास्ते कह रहे हैं क्यों मंजिल की फिकर है , मंजिल मिलते ही पैरों के छाले सताते बहुत हैं .

  (६)
रास्ते बड़े अच्छे लगते थे ,जब तुम हमसफ़र थे .... अब तो मील के पत्थर भी मुंह चिढाते लगते हैं .

  (७)
गाँव से जाते देखकर कहने लगे पीपल,बेर, बबूल , देखो मुसाफिर जा रहा खाने शहर की धुल .

  (८)
शाम अब भी वही है...बस तू नहीं तेरी यादेँ साथ हैं , और है वो 'मीठी' चाय जो कभी साथ पीते थे हम... !

  (९)
गाँव के चौपाल में लगी पंचों की भीड़ , कटघरे में खड़े फिर से राँझा और हीर .

  (१०)
प्रजातंत्र के नाम पर , खूब बढाई भीड़ ... आज देश को लूट रहे नेता ,बाबा, पीर .

  (११)
तेरी आँखों से पीते हैं आजकल ....
और वाइज़ ये समझे हैं की हम नमाज़ी हो गए .

  (१२)
शाम ओ सहर का हाल लिखा...
अपना हाल बेहाल लिखा .

  (१३)
तमाम ज़ुल्म हैं , मजबूरियां हैं , बंदिशें हैं ,
फिर भी कुछ उम्मीदें हैं ,ख्वाब हैं , ज़िन्दगी है .


(१४)  
कुछ सवालों ने रातों की नींदें उदा दी हैं ,
जवाबों में भी तो रतजगे लिखे हैं .
(१५)
दिल की बात समझ ना पाया ,
दिमाग तो उसने बहुत लगाया .

  (१६)
दिल लगाने वालों को कहाँ मिलती हैं मंजिलें ,
रहगुजर होते हैं , हमसफ़र होते हैं ...!

  (१७)
प्यार अब जरूरतों के हिसाब से होती है मुसाफिर , आज तुम्हारी जरुरत है , कल किसी और की ....!

  (१८)
ये अलसाए पेड़ कभी सोते नहीं रात भर , पहाड़ों में सुबह कुछ यूँ होती है ....!

  (१९)
सारे शहर में ये चर्चा आम है , बेवफाई उसकी और हम बदनाम हैं .
 
(२०)
ज़िन्दगी में ग़म भी होंगे और ख़ुशी भी होंगे , हर बरसात के बाद बसंत के मौसम भी होंगे .

  (२१)
ज़िन्दगी बिताने के लिए साथ , तू नहीं तेरा ग़म ही सही जाना ...!

23 May 2012

आवारा चाँद...

                           
                            (1)

चाँद भी रात भर भटकता रहता है अपनी धुन में ,


सितारों की भीड़ में है 'मुसाफ़िर' आवारा चाँद .


                             (2)


चाँद फिर निकल आया है , चांदनी रातों में ,


तेरी तस्वीर फिर आ गयी ,भीगी सी आँखों में .


                             (3)


इस अजनबी शहर में फक्त तेरी  याद का सहारा है ,


वरना कब के हम भी कही ग़ुम हो गए होते .


                              (4)


कभी कभी दिल के हाथों मजबूर होकर हमने भी ,


तेरी यादों के सहारे शाम-ओ-सहर  बितायी है .


                              (5)


दिल , दोस्ती , प्यार , वफ़ा ,ख़ुलूस  'मुसाफिर' ,


मिलते हैं ये सब अब तो किताबों के पन्नो में .


                             (6)


देख के यारों की यारी 'मुसाफिर' ये ख्याल आता है ,


हम  तन्हा ही ठीक हैं यारों के इस भीड़ में .


28 January 2012

गाँव और शहर ...




गाँव में ज़िन्दगी का उत्सव-उमंग मनाते लोग ,
शहर में ज़िन्दगी के रंगीनियों में नाचते लोग.


गाँव में प्यार,दोस्ती मुफ्त में  बांटते लोग ,
शहर  में ये सब किताबों में खोजते लोग .


गाँव में प्रकृति के रंगों से सराबोर लोग ,
शहर में 'क्रेयोन' से रंग भरते लोग .


गाँव के चौपाल में एक दुसरे का सुख-दुःख बांटते लोग ,
शहर में हर घर में एक दुसरे की कहानियां बनाते लोग


.गाँव में मंदिर की घंटियों से गूंजती हैं सुबह-शाम ,
शहर में वही शोर भरी सुबह वही शोर भरी शाम .

गाँव में मुर्गे के बांग पर सुबह की आहट पाते लोग,  
शहर में फैक्ट्री के सायरन से समय मिलाते लोग .

गाँव में मिटटी के घरों में भी महलों के सुख पाते लोग ,
शहर में कांक्रीट के जंगलों में आँखों में रात बिताते लोग .

गाँव में रिश्तों के खुशबुओं से महकता हर घर आँगन ,
शहर में रिश्तों के बोझ ढोते कांक्रीट के जंगल .

गाँव में बच्चों के खिलखिलाहट से गूंजते गली मोहल्ले ,
शहर में बस्तों के बोझ से दबे ,परेशां माँ-बाप के प्यारे .

गाँव में बरगद ,आम ,पीपल ,के छांव में सुस्ताते लोग ,
शहर में ज़िन्दगी के भाग दौड़ से कब फुर्सत पाते लोग .


19 July 2011

ज़िन्दगी...कुछ रंग....



                          (1)
ज़िन्दगी की राह में कुछ मोड़ ऐसे आते हैं 'मुसाफ़िर',
के पीछे मुड़कर देखने की हसरत चैन-ओ-करार छीन लेती है .

                         (2)
ज़िन्दगी की बाज़ी में कुछ दाँव क्या हारे 'मुसाफ़िर' ,
यारों की दुआ सलाम को भी तरस गए ...!!

                         (3)
फूलों से सीखो ज़िन्दगी का सलीक़ा 'मुसाफ़िर' ,
मुरझाने से पहले चमन महका जाते हैं ...!!

                         (4)
तुम्हारे आने से पहले भी ज़ी तो रहे थे मगर ,
तुम आये , प्यार आया , ज़िन्दगी आई...!!

                         (5)
कोई शख्स दिल में इस कदर उतर गया है 'मुसाफ़िर' ,
दोस्तों की मौजूदगी भी अब तो भीड़ लगती है .  

                         (6)
प्यार का जादू भी क्या क्या तमाशे दिखाता है ,
हर तमाशे में क़िरदार बदलता जाता है .

                         (7)
ज़िन्दगी ने भी क्या क्या रंग दिखाए 'मुसाफ़िर' ,
अब तो सब से यही कहते फिरते हैं , 'ज़िन्दगी बहुत रंगीन है' .

18 July 2011

कुछ ख्याल , बिखरे से......

                     (1)
उन्हें शिकायत है हमें क़द्र नहीं जज्बातों की ,
शायद उन्हें नहीं पता दो वक़्त की रोटी क्या चीज़ है .

                     (2)
तुझ से मिला तो ये हुआ एहसास ,
चकोर चाँद को देखता क्यों है ..!!

                     (3)
कुछ लोग ज़िन्दगी में मौसम की तरह आते हैं ,
कुछ दिन ठहरकर , चुपके से गुज़र जाते हैं.

                     (4)
मुलाक़ात प्यार में जरूरी तो नहीं 'मुसाफ़िर' ,
वो अनकही बातें समझ लेते हैं ,ये क्या कम है . 

                    (5)
किसी को यूँ भी , दिल में ना बसाओ 'मुसाफ़िर' ,
सुना है इस मकान के माकीं बहुत तड़पाते हैं . 

                    (6)
छीन के मेरा सब्र-ओ-करार क्या पाएगी ,
ऐ ज़िन्दगी ये तेरे किस काम आएगी .

                     (7)
ग़म में जीने का मज़ा ही कुछ और है 'मुसाफ़िर' ,
                     (8)
वो भी क्या दिन थे  'मुसाफ़िर' , जब दीवारों से घर बनता था ,
अब घर में बनती हैं दीवारें .

जब दादी-चाची-बुआ-अम्मा-ताई की लगती थी चौपाल ,
अब दिलों के बीच बन गयी है दीवारें .

17 July 2011

कुछ शब्द , कुछ भावनाएं...



उस से बिछुड़े हुए एक जमाना हो गया ,
बहुत पुराना ये फ़साना हो गया .

हम उस फ़साने  के ऐसे किरदार बन कर रह गए ,
जिसका दुश्मन ज़माना हो गया .

कसमो और वादों के उस भीड़ में ,
एक तेरा बहाना रह गया .

कितनी अजीब ये ज़िन्दगी की रिवायते हैं ,
बस साँसो का आना जाना रह गया .