My Dispersed Thoughts....
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- मुसाफ़िर
- Nomad ! I love travelling and had been to almost all the corners in India and other countries include Germany , France , Italy , Hungary , Austria , The Netherland , Belgium .
©मुसाफ़िर
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©मुसाफ़िर
19 November 2013
20 May 2013
My Dispersed Thoughts....
(१)
वो बस मंजिल का भरम था ख्वाब में ...
आँख खुलते ही रास्ते मुस्कुराने लगे .
(२)
पानी को लेकर देश में मची है हाहाकार ,
पैसे वाले कर रहे , खून का व्योपार .
(३)
गाँव में फूल रहे हैं टेसू के फूल ,
शहर में मिलते सिर्फ मिटटी और धुल .
(४)
दिल की दुकाने सजी , प्यार हुआ व्योपार ...
हम जैसे सादा दिलों का , कोई नहीं खरीदार .
(५)
रास्ते कह रहे हैं क्यों मंजिल की फिकर है ,
मंजिल मिलते ही पैरों के छाले सताते बहुत हैं .
(६)
रास्ते बड़े अच्छे लगते थे ,जब तुम हमसफ़र थे ....
अब तो मील के पत्थर भी मुंह चिढाते लगते हैं .
(७)
गाँव से जाते देखकर कहने लगे पीपल,बेर, बबूल ,
देखो मुसाफिर जा रहा खाने शहर की धुल .
(८)
शाम अब भी वही है...बस तू नहीं तेरी यादेँ साथ हैं ,
और है वो 'मीठी' चाय जो कभी साथ पीते थे हम... !
(९)
गाँव के चौपाल में लगी पंचों की भीड़ ,
कटघरे में खड़े फिर से राँझा और हीर .
(१०)
प्रजातंत्र के नाम पर , खूब बढाई भीड़ ...
आज देश को लूट रहे नेता ,बाबा, पीर .
(११)
तेरी आँखों से पीते हैं आजकल ....
और वाइज़ ये समझे हैं की हम नमाज़ी हो गए .
(१२)
शाम ओ सहर का हाल लिखा...
अपना हाल बेहाल लिखा .
(१३)
तमाम ज़ुल्म हैं , मजबूरियां हैं , बंदिशें हैं ,
फिर भी कुछ उम्मीदें हैं ,ख्वाब हैं , ज़िन्दगी है .
(१४)
कुछ सवालों ने रातों की नींदें उदा दी हैं ,
जवाबों में भी तो रतजगे लिखे हैं .
(१५)
दिल की बात समझ ना पाया ,
दिमाग तो उसने बहुत लगाया .
(१६)
दिल लगाने वालों को कहाँ मिलती हैं मंजिलें ,
रहगुजर होते हैं , हमसफ़र होते हैं ...!
(१७)
प्यार अब जरूरतों के हिसाब से होती है मुसाफिर ,
आज तुम्हारी जरुरत है , कल किसी और की ....!
(१८)
ये अलसाए पेड़ कभी सोते नहीं रात भर ,
पहाड़ों में सुबह कुछ यूँ होती है ....!
(१९)
सारे शहर में ये चर्चा आम है ,
बेवफाई उसकी और हम बदनाम हैं .
(२०)
ज़िन्दगी में ग़म भी होंगे और ख़ुशी भी होंगे ,
हर बरसात के बाद बसंत के मौसम भी होंगे .
(२१)
ज़िन्दगी बिताने के लिए साथ ,
तू नहीं तेरा ग़म ही सही जाना ...!
23 May 2012
आवारा चाँद...
(1)
चाँद भी रात भर भटकता रहता है अपनी धुन में ,
सितारों की भीड़ में है 'मुसाफ़िर' आवारा चाँद .
(2)
चाँद फिर निकल आया है , चांदनी रातों में ,
तेरी तस्वीर फिर आ गयी ,भीगी सी आँखों में .
(3)
इस अजनबी शहर में फक्त तेरी याद का सहारा है ,
वरना कब के हम भी कही ग़ुम हो गए होते .
(4)
कभी कभी दिल के हाथों मजबूर होकर हमने भी ,
तेरी यादों के सहारे शाम-ओ-सहर बितायी है .
(5)
दिल , दोस्ती , प्यार , वफ़ा ,ख़ुलूस 'मुसाफिर' ,
मिलते हैं ये सब अब तो किताबों के पन्नो में .
(6)
देख के यारों की यारी 'मुसाफिर' ये ख्याल आता है ,
हम तन्हा ही ठीक हैं यारों के इस भीड़ में .
28 January 2012
गाँव और शहर ...
गाँव में ज़िन्दगी का उत्सव-उमंग मनाते लोग ,
शहर में ज़िन्दगी के रंगीनियों में नाचते लोग.
गाँव में प्यार,दोस्ती मुफ्त में बांटते लोग ,
शहर में ये सब किताबों में खोजते लोग .
गाँव में प्रकृति के रंगों से सराबोर लोग ,
शहर में 'क्रेयोन' से रंग भरते लोग .
गाँव के चौपाल में एक दुसरे का सुख-दुःख बांटते लोग ,
शहर में हर घर में एक दुसरे की कहानियां बनाते लोग
.गाँव में मंदिर की घंटियों से गूंजती हैं सुबह-शाम ,
शहर में वही शोर भरी सुबह वही शोर भरी शाम .
गाँव में मुर्गे के बांग पर सुबह की आहट पाते लोग,
शहर में फैक्ट्री के सायरन से समय मिलाते लोग .
गाँव में मिटटी के घरों में भी महलों के सुख पाते लोग ,
शहर में कांक्रीट के जंगलों में आँखों में रात बिताते लोग .
गाँव में रिश्तों के खुशबुओं से महकता हर घर आँगन ,
शहर में रिश्तों के बोझ ढोते कांक्रीट के जंगल .
गाँव में बच्चों के खिलखिलाहट से गूंजते गली मोहल्ले ,
शहर में बस्तों के बोझ से दबे ,परेशां माँ-बाप के प्यारे .
गाँव में बरगद ,आम ,पीपल ,के छांव में सुस्ताते लोग ,
शहर में ज़िन्दगी के भाग दौड़ से कब फुर्सत पाते लोग .19 July 2011
ज़िन्दगी...कुछ रंग....
के पीछे मुड़कर देखने की हसरत चैन-ओ-करार छीन लेती है .
(2)
ज़िन्दगी की बाज़ी में कुछ दाँव क्या हारे 'मुसाफ़िर' ,
यारों की दुआ सलाम को भी तरस गए ...!!
(3)
फूलों से सीखो ज़िन्दगी का सलीक़ा 'मुसाफ़िर' ,
मुरझाने से पहले चमन महका जाते हैं ...!!
(4)
तुम्हारे आने से पहले भी ज़ी तो रहे थे मगर ,
तुम आये , प्यार आया , ज़िन्दगी आई...!!
(5)
कोई शख्स दिल में इस कदर उतर गया है 'मुसाफ़िर' ,
दोस्तों की मौजूदगी भी अब तो भीड़ लगती है .
(6)
प्यार का जादू भी क्या क्या तमाशे दिखाता है ,
हर तमाशे में क़िरदार बदलता जाता है .
(7)
ज़िन्दगी ने भी क्या क्या रंग दिखाए 'मुसाफ़िर' ,
ज़िन्दगी ने भी क्या क्या रंग दिखाए 'मुसाफ़िर' ,
अब तो सब से यही कहते फिरते हैं , 'ज़िन्दगी बहुत रंगीन है' .
18 July 2011
कुछ ख्याल , बिखरे से......
(1)
उन्हें शिकायत है हमें क़द्र नहीं जज्बातों की ,
शायद उन्हें नहीं पता दो वक़्त की रोटी क्या चीज़ है .
(2)
तुझ से मिला तो ये हुआ एहसास ,
चकोर चाँद को देखता क्यों है ..!!
(3)
कुछ लोग ज़िन्दगी में मौसम की तरह आते हैं ,
कुछ दिन ठहरकर , चुपके से गुज़र जाते हैं.
(4)
मुलाक़ात प्यार में जरूरी तो नहीं 'मुसाफ़िर' ,
वो अनकही बातें समझ लेते हैं ,ये क्या कम है .
(5)
किसी को यूँ भी , दिल में ना बसाओ 'मुसाफ़िर' ,
किसी को यूँ भी , दिल में ना बसाओ 'मुसाफ़िर' ,
सुना है इस मकान के माकीं बहुत तड़पाते हैं .
(6)
छीन के मेरा सब्र-ओ-करार क्या पाएगी ,
ऐ ज़िन्दगी ये तेरे किस काम आएगी .
(7)
ग़म में जीने का मज़ा ही कुछ और है 'मुसाफ़िर' ,
ग़म में जीने का मज़ा ही कुछ और है 'मुसाफ़िर' ,
खुशियों की तरह ये साथ तो नहीं छोड़ती .
(8)
वो भी क्या दिन थे 'मुसाफ़िर' , जब दीवारों से घर बनता था ,
अब घर में बनती हैं दीवारें .
जब दादी-चाची-बुआ-अम्मा-ताई की लगती थी चौपाल ,
अब दिलों के बीच बन गयी है दीवारें .
17 July 2011
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