के पीछे मुड़कर देखने की हसरत चैन-ओ-करार छीन लेती है .
(2)
ज़िन्दगी की बाज़ी में कुछ दाँव क्या हारे 'मुसाफ़िर' ,
यारों की दुआ सलाम को भी तरस गए ...!!
(3)
फूलों से सीखो ज़िन्दगी का सलीक़ा 'मुसाफ़िर' ,
मुरझाने से पहले चमन महका जाते हैं ...!!
(4)
तुम्हारे आने से पहले भी ज़ी तो रहे थे मगर ,
तुम आये , प्यार आया , ज़िन्दगी आई...!!
(5)
कोई शख्स दिल में इस कदर उतर गया है 'मुसाफ़िर' ,
दोस्तों की मौजूदगी भी अब तो भीड़ लगती है .
(6)
प्यार का जादू भी क्या क्या तमाशे दिखाता है ,
हर तमाशे में क़िरदार बदलता जाता है .
(7)
ज़िन्दगी ने भी क्या क्या रंग दिखाए 'मुसाफ़िर' ,
ज़िन्दगी ने भी क्या क्या रंग दिखाए 'मुसाफ़िर' ,
अब तो सब से यही कहते फिरते हैं , 'ज़िन्दगी बहुत रंगीन है' .
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! उम्दा प्रस्तुती!
ReplyDeleteबस यही तो हैं ज़िन्दगी के रंग ....सुंदर पंक्तियाँ
ReplyDeleteShukriya Babli Ji , hausla afjai ke liye !
ReplyDeleteशुक्रिया मोनिका जी !
ReplyDeletenice poem from you recently m following ur blog good
ReplyDeleteThanks Manisha ji !
ReplyDeleteभाव अच्छे बन पड़े हैं,प्रयास के लिए शुभकामनायें !
ReplyDeletebahut khub kaha hai aapne
ReplyDeleteकोई शख्स दिल में इस कदर उतर गया है 'मुसाफ़िर' ,
दोस्तों की मौजूदगी भी अब तो भीड़ लगती है .
Bahut achchha likha hai aapne.....
ReplyDeleteफूलों से सीखो ज़िन्दगी का सलीक़ा 'मुसाफ़िर' ,
मुरझाने से पहले चमन महका जाते हैं ...!!
Kya baat hai
@Rajeev Upadhyay : Thanks buddy for your encouraging words !
ReplyDeleteBahut Sunder Likha Aapne ... Kya main isse apni Facebook me share kar sakta hu...
ReplyDeleteबड़े ही उजले रंग हैं ज़िंदगी के....वाह वाह!!
ReplyDeleteमेरे सलीकों को पढ़ने के लिए plz मेरे ब्लॉग पर आएं...अच्छा लगेगा मुझे :)
http://renu-mishra.blogspot.in
तथा आसानी से कमेंट कर सकें उसके लिए ये verification टूल हटा दें :)